नवरात्रि के अंतिम दिन यानि महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। पीपल भारत की इस रिपोर्ट में जानिए मां सिद्धिदात्री की पूजा की सही विधि (puja vidhi), आरती और महत्व के बारे में…
आज नवरात्रि का अंतिम दिन है। इसे महानवमी (mahanavami) भी कहते हैं। इस दिन मां सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री की सच्चे मन से पूजा करने से आपकी सब मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां जानिए, मां सिद्धिदात्री के स्वरूप, पूजा की सही विधि (puja vidhi), आरती (Navratri aarti) और महत्व के बारे में।
ऐसा है मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर विराजमान हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनके दाएं तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख है जबकि ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।
मां सिद्धिदात्री की पूजन विधि (puja vidhi) और कन्या पूजन
मां सिद्धिदात्री की पूजन विधि इस प्रकार है:
- सबसे पहले कलश की पूजा करें और उनमें रखे सभी देवी-देवताओं का ध्यान करें।
- इसके बाद मां सिद्धिकी के मंत्रों का जाप कर उनकी पूजा करें।
- इसके बाद मां की आरती करें। उन्हें नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करें।
- इस दिन नौ कन्याओं और एक बालक को घर बुलाकर उन्हें भोग लगाएं। कन्याओं की उम्र 2 से 10 वर्ष तक होनी चाहिए। अगर नौ से अधिक कन्याएं भोग के लिए आ जाएं तो भी कोई आपत्ति नहीं है।
- इसके बाद बाल और कन्याओं का आशीर्वाद लें।
मां सिद्धिदात्री की उपासना का महत्व
जो भक्त मां सिद्धिदात्री की सच्चे मन से पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। ऐसी मान्यता है कि इनकी कृपा से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। प्राचीन शास्त्रों में अणिमा, गरिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व नामक आठ सिद्धियों का उल्लेख मिलता है। देवी मां की उपासना से ये सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
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मां सिद्धिदात्री का मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
मां सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता ।
तू भक्तो की रक्षक, तू दासों की माता ॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि ।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ॥
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम ।
जभी हाथ सेवक के सर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो न कोई विधि है ।
तू जगदम्बे दाती तू सर्वसिद्धि है ॥
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो ।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ॥
तू सब काज उसके कराती हो पूरे ।
कभी काम उस के रहे न अधूरे ॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया ।
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया ॥
सर्व सिद्धि दाती वो है भागयशाली ।
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली ॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा ।
महा नंदा मंदिर मैं है वास तेरा ॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता ॥